जीवधारी : लक्षण एवं वर्गीकरण | Organisms: Characteristics and Classification

jelly fish - जीवधारी : लक्षण एवं वर्गीकरण | Organisms: Characteristics and Classification
जीवधारी : लक्षण एवं वर्गीकरण | Organisms: Characteristics and Classification




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जीव विज्ञान जीवधारियों का अध्ययन है, जिसमें सभी पादप और जीव-जंतु शामिल हैं। विज्ञान के रूप में जीव विज्ञान का अध्ययन अरस्तू के पौधों और पशुओं के  अध्ययन से शुरू हुआ, जिसकी वजह से उन्हें जीव विज्ञान का जनक कहा जाता है। लेकिन बायोलॉजी शब्द का प्रथम बार प्रयोग फ्रांसीसी प्रकृति विज्ञानी जीन लैमार्क ने किया।

जीवधारियों के लक्षण:

    • संगठन (organisation) – सभी जीवों का निर्धारित आकार व भौतिक एवं रासायनिक संगठन होता है।
    • उपापचय (Metabolism) – पशु, जीवाणु, कवक आदि अपना आहार कार्बनिक पदार्थों से ग्रहण करते हैं। हरे पादप अपना आहार पर्यावरण से जल, कार्बन-डाइऑक्साइड और कुछ खनिजों के रूप में लेकर उन्हें प्रकाश संश्लेषण के द्वारा संश्लेषित करते हैं।
    • वृद्धि व परिवर्धन- जीवधारियों में कोशिका के  विभाजन और पुनर्विभाजन से ढेर सारी कोशिकाएं बनती हैं, जो शरीर के विभिन्न अंगों में विभेदित हो जाती हैं।
  • जनन (Reproduction) – निर्जीवों की तुलना में जीवधारी अलैंगिक अथवा लैंगिक जनन द्वारा अपना वंश बढ़ाने की क्षमता द्वारा पहचाने जाते हैं।
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जीवधारियों का वर्गीकरण (Classification of Living Organism) – 




द्विपाद नाम पद्धति (Binomial Nomenclature के अनुसार हर जीवधारी केे  नाम में दो शब्द होते हैं। पहला पद है वंश (Generic) नाम जो उसके संबंधित रूपों से साझा होता है और दूसरा पद एक विशिष्टï शब्द होता है (जाति पद)। दोनों पदों के मिलने से जाति (species) का नाम बनता है। 1969 में आर. एच. व्हीटेकर ने जीवों को 5 जगतों (Kingdoms) में विभाजित किया। ये पाँच जगत निम्नलिखित हैं-
  • मोनेरा (Monera)- इस जगत के जीवों में केंद्रक विहीन प्रोकेरिओटिक (procaryotic) कोशिका होती है। ये एकल कोशकीय जीव होते हैं, जिनमें अनुवांशिक पदार्थ तो होता है, किन्तु इसे कोशिका द्रव्य से पृथक रखने के लिए केंद्रक नहीं होता। इसके अंतर्गत जीवाणु (Bacteria) तथा नीलरहित शैवाल (Blue Green algae) आते हैं।
  • प्रोटिस्टा (Protista)- ये एकल कोशकीय (Unicellular) जीव होते हैं, जिसमें विकसित केंद्रक वाली यूकैरियोटिक (Eucaryotic) कोशिका होती है। उदाहरण- अमीबा, यूग्लीना, पैरामीशियम, प्लाज्मोडियम इत्यादि।
  • कवक (Fungi)- ये यूकैरियोटिक जीव होते हैं। क्योंकि हरित लवक और वर्णक के अभाव में इनमें  प्रकाश संश्लेषण नहीं होता। जनन लैंगिक व अलैंगिक दोनों तरीके से होता है।
  • प्लान्टी (Plantae) – ये बहुकोशकीय पौधे होते है। इनमें प्रकाश संश्लेषण होता है। इनकी कोशिकाओं में रिक्तिका (Vacuole) पाई जाती है। जनन मुख्य रूप से लैंगिक होता है। उदाहरण- ब्रायोफाइटा, लाइकोपोडोफाइटा, टेरोफाइटा, साइकेडोफाइटा, कॉनिफरोफाइटा, एन्थ्रोफाइटा इत्यादि।
  • एनीमेलिया (animalia)- ये बहुकोशिकीय यूकैरियोटिक जीव होते हैं जिनकी कोशिकाओं में दृढ़ कोशिका भित्ति और प्रकाश संश्लेषीय तंत्र नहीं होता। यह दो मुख्य उप जगतों में विभाजित हैं, प्रोटोजुआ व मेटाजुआ।
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मुख्य प्राणी संघ निम्न हैं-

  • प्रोटोजुआ- यह सूक्ष्मजीव एककोशकीय होते हैं। उदाहरण- ट्रिपैनोसोमा, यूग्लीना, पैरामीशियम, प्लाज्मोडियम आदि।
  • पोरीफेरा- इनका शरीर बेलनाकार होता है। उदाहरण- साइकॉन, यूस्पंजिया, स्पंजिला।
  • सीलेनट्रेटा- यह पहले बहुकोशकीय अरीय सममिति वाले प्राणी हैं। इनमें ऊतक और एक पाचक गुहा होती है। उदाहरण- हाइड्रा, जैली फिश आदि।
  • प्लेटीहेल्मिन्थीज- इन प्राणियों का शरीर चपटा, पतला व मुलायम होता है। यह कृमि जैसे जीव होते हैं। उदाहरण- फेशिओला (लिवर फ्लूक), शिस्टोजोमा (रक्त फ्लूक) आदि।
  • एश्स्केलमिन्थीज- यह एक कृमि है जिनका गोल शरीर दोनों ओर से नुकीला होता है। उदाहरण- एस्केरिस (गोलकृमि), ऑक्सियूरिस (पिनकृमि), ऐन्साइलोस्टोमा (अंकुशकृमि) आदि।
  • ऐनेलिडा- इन कृमियों का गोल शरीर बाहर से वलयों या खंडों में बंटा होता है। उदाहरण- फेरेटिमा (केंचुआ), हिरूडिनेरिका (जोंक) आदि।
  • आर्थोपोडा- शरीर खण्डों में विभक्त होता है जो बाहर से एक सख्त काइटिन खोल से ढंका होता है। उदाहरण- क्रस्टेशिआन (झींगा), पैरीप्लेनेटा (कॉकरोच), पैपिलियो (तितली), क्यूलेक्स (मच्छर), बूथस (बिच्छू), लाइकोसा (वुल्फ मकड़ी), स्कोलोपेन्ड्रा (कनखजूरा), जूलस (मिलीपीड) आदि।
  • मोलास्का – इन प्राणियों की देह मुलायम खण्डहीन होती है और उपांग (ड्डश्चश्चद्गठ्ठस्रड्डद्दद्गह्य) नहीं होते। उदाहरण- लाइमेक्स (स्लग), पटैला (लिम्पेट), लॉलिगो (स्क्विड) आदि।
  • एकाइनोडर्मेटा- इसमें शूलीय चर्म वाले प्राणी शामिल हैं। ये कई मुलायम नलिका जैसी संरचनाओं से चलते हैं, जिन्हें नाल पाद (ट्यूबफीट) कहते हैं। उदाहरण- एस्ट्रोपैक्टेन (तारामीन), एकाइनस (समुद्री अर्चिन) आदि।
  • कॉर्डेटा – संघ कॉर्डेटा पाँच उपसंघों में विभाजित किये जाते हैं-
    • हेमीकॉर्डेटा – इनमें ग्रसनी, क्लोम, विदर और पृष्ठïीय खोखली तंत्रिका रज्जु पाई जाती है। उदाहरण- बैलेनोग्लोसस (टंग वार्म)।
    • यूरोकॉर्डेटा- इन थैली जैसे स्थिर जीवों में वयस्क अवस्था में तंत्रिका रज्जु और पृष्ठï रज्जु (नोटोकार्ड) नहीं होता। उदाहरण- हर्डमेनिया, डोलियोलम (कंचुकी) आदि।




    • सिफेलोकॉर्डेटा- इन प्राणियों में कॉर्डेटा संघ के विशिष्टï लक्षण मौजूदा रहते हैं। उदाहरण- ब्रेंकियोस्टोमा (ऐम्फिऑक्सस) आदि।
    • ऐग्नेथा- यह कशेरूकियों का एक छोटा सा समूह है जिसमें चूषण मुख होता है। ऐसे प्राणियों को चक्रमुखी (साइक्लोस्टोम) कहते हैं।
    • नैथोस्टोमाटा- इसमें मछलियाँ, उभयचर (एम्फीबिया), सरीसृप, पक्षी तथा स्तनधारी प्राणी शामिल हैं। यह उप संघ पाँच वर्गों में विभाजित किया जाता है-
      • पिसीज- ये जलीय, असमतापी, जबड़े वाले कशेरुकी हैंै जो जीवन भर जल में रहने के लिए अनुकूलित हैं। इनके शरीर शल्कों से ढंके रहते हैं, क्लोमो द्वारा ये श्वसन करती हैं और पंखों (द्घद्बठ्ठ) की मदद से चलते हैं। उदाहरण – लैबियो (रोहू), कतला (कटला), हिप्पोकैम्पस (समुद्री घोड़ा) आदि।
      • ऐम्फीबिया – यह असमतापी कशेरूकी हैं जिनमें चार टांगें और शल्कहीन चर्म होते हैं जो ज्यादातर गीला रहता है। उदाहरण- राना टिगरीना (मेंढक), बुफो (टोड), सैलेमेन्ड्रा (सलामेन्डर) आदि।
      • रेप्टीलिया- इन असमतापी कशेरूकियों में सख्त शल्कीय त्वचा होती है। उदाहरण- टेस्टूडो (कछुआ), हेनीडैक्टाइलस (छिपकली), क्रोकोडाइलस (मगरमच्छ) आदि।
      • एवीज (पक्षीवर्ग)- पक्षी ही ऐसे जीव हैं जिनका शरीर पंखों से ढंका रहता है। इनके अग्रपाद पंखों में रूपांतरित होकर उड़ान में काम आते हैं। उदाहरण पैसर (गौरैया), कोर्वस (कौआ), कोलंबा (कबूतर), पावो (मोर) आदि।
      • मैमेलिया (स्तनी वर्ग)- ये समतापी कशेरूकी सबसे उच्च वर्ग के  हैं। इनका शरीर बालों से ढंका रहता है। इनमें दुग्ध-ग्रंथियाँ होती हैं जिससे वे नन्हें बच्चों का पोषण करते हैं। उदाहरण- डक बिल्ड प्लैटिपस और स्पाइनी चींटीखोर, फैलिस (बिल्ली), कैनिस (कुत्ता), पैन्थरा (शेर, चीता, बाघ) मकाका (बंदर), ऐलिफस (हाथी), बैलीना (व्हेल), होमो सेपिएन्स (मानव) आदि।




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